वो पूछते हैं, तुम कैसे हो
उन्हे कैसे बताएँ, हम हैं ही कहाँ?
क्या वो इतना भी नहीं जानते
जब से मिले हैं वो
मिटा चुके हैं अपना वजूद
उल्टे हम तो हर वक्त
उन्हीं में खोजते हैं खुद को
उनकी आँखों में खंगालते हैं
अपने अक्स को
उन पर छाता है जब बसंत
तो खिल जाते हैं
उनके पतझड़ में
हम ठूँठ नजर आते हैं
खुश चेहरे को देखते ही
हो जाते हैं तरबतर
और पलकों पर देख एक बूंद
हम आंसू बन जाते हैं
फिर भी तुम पूछना चाहते हो
कि हम कैसे हैं?
तो बस नजर भर तुम
देख लिया करो आईने को!
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