Monday, May 30, 2011

जागती नींद!



मेरी नींद
खुलने के बाद भी नहीं खुलती
हाँ, आँखें खुल जाती है
मेरा ईमान
पुतलियों में बसता है, पर रोशन नहीं
हाँ, वह बेईमान हो गया है
मेरा ध्ार्म
सोता है पर हड़बड़ा उठता है
हाँ, पर अध्ार्मी हो गया है
मेरा विवेक
आँखें मूँदे करता है सोने का ढोंग
हाँ, वह अविवेकी हो गया है
मेरी संवेदनाएँ
गहरी नींद होती है, जागती ही नहीं
हाँ, वे संवेदनशून्य हो गई हैं
मेरा जमीर
सोया रहता है पर जागता दिखता है
हाँ, वो मर गया है
और... मेरी अंतरआत्मा...
वो कभी नहीं सोती
न करती है ढोंग
न ही हड़बड़ाती है
वह सब-सब देख सकती है
पर अब वह गूंगी-बहरी है



 

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