Friday, May 20, 2011

ऐसी हो तुम!


चंचल पहाड़ी नदी
यहाँ-वहाँ बल खाती
मचलती, झूमती
निडर हो चोटी से कूदती
पत्थरों का सीना चिरती
उफनती, शोर मचाती
आवेग में आँखे तरेरती
बादलों को चूमती
बियाबान में भटकती
डालियों से झूमती
मुलायम घास में सरसराती
पर जब पहुँचती
बस्ती के बीच
चुप, शांत, गंभीर हो
बस निर्मल जल से
सूखे कंठ तर करती
हाँ, बिल्कुल
ऐसी ही हो 'तुम"!



 

1 comment:

  1. Lovely......
    bas ek nadi ki chanchalta ka is se sundar varnan maine nahi padha kahin.. :)

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