Saturday, March 12, 2011

क्यूँ छिनी यूँ जिंदगानी?

अभी-अभी ही तो वह कली से फूल बनी थी
अभी-अभी ही तो बसंती बयार चली थी
अभी-अभी ही तो भवंरों की ध्ाुन सुनी थी
अभी-अभी ही तो प्रेम अगन जगी थी
हाय अचानक क्या हुआ
बाग का फूल किसने चुराया
कमरे में उसे किसने सजाया
अपनों से पराया किसने बनाया
क्यों दे रहे हो इसे ये खाद-पानी
उसकी तो बसंती बयार में ही है जिंदगानी
हाय अब यह क्या कर डाला
इस हालत में फूल तो मुरझाना ही था
पर तुझे माली को तो नहीं मार डालना था











 

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