क्या हूँ मैं, क्यों हूँ मैं छिड़ा है द्वंद हर पल
हर चेहरा, हर किताब पढ़ डाली
अब कहाँ जाऊँ, क्या करूँ सोचूँ हर पल
मिल जाए मुझे वह जो इस मन में अटका
कैसे मिले, कौन लाए बेचैन हूँ हर पल
रूह में देखा उतकर, मिलों भी देखा चलकर
थक कर चूर शरीर की उलझन बढ़ रही हर पल
लगता है अब करार आएगा उस पल
जब शून्य में विलीन हो जाएँगे सारे पल
nice written........
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