Friday, March 11, 2011

तूफान...


एक दिन आया बहुत तेज तूफान
बारिश का भी था जोरदार उफान 
मैंने देखा था वह तूफानी बवंडर
हर ओर नजर आ रहा था तबाही का मंजर
शाखों की क्या बिसात, जब पेड़ छोड़ चुके थे जड़ें
तिनके के मानिंद उड़ रहे थे कई घरोंदे बड़े-बड़े
क्या इंसान और क्या जानवर
सब थे बिल्कुल लाचार
चारों और मचा था हाहाकार
ऐसे में कहीं एक बदहवास-सी कोई
लगता था जैसे बरसों से नहीं सोई
आँखों में ज्वाला लिए देने लगी तूफान को चुनौती
कभी छप्पर को संभालती, कभी चौके तक दौड़ जाती
तूफान भी अपनी जिद पर अड़ा
लेकिन मासूम का हौंसला भी बड़ा
दोनों झुकने को नहीं थे तैयार
मेरा बस चलता तो मैं रोक लेता वह बवंडर
पर क्या करूँ मैं भी था दिल के हाथों मजबूर
क्योंकि जो तूफान था वह उमड़ा था मेरे दिल में
और घुस जाना चाहता था उसके दिल में
मासूम के दिल में थे कई घरोंदें
आखिर वह कैसे यूँ पार होने देती सारी हदें
उसने तूफान को भी यह अहसास कराया
फिर क्या था दोनों ने मिलकर एक नया घरोंदा बनाया
पर यह क्या, अब एक नहीं दो-दो जगह तूफान आया।



 

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