जिंदगी जब किसी के लिए खुशियाँ चुनती है
तो वह अमीरी-गरीबी नहीं देखती
वह सूतर और सिरत भी नहीं देखती
वह नहीं समझती आस्तिक-नास्तिक का फर्क
न ही करती वह उसकी बदनामियों का जिक्र
वह न उम्र देखती है, न तर्जुबा ही देखती
तालिम भी नहीं देखती है, न गुण-अवगुण ही देखती
मैंने जिंदगी से कहा- तू बड़ी है जालिम
जब तूझे भेद करना ही नहीं आता
तो कैसे ढूँढती है तू उस दिल का पता?
जिंदगी बोली- किसने कहा मैं चुनती हूँ खुशियाँ
सच यह है जो चुनता है खुशियाँ, मैं उसे चुनती हूँ
मैंने तुम्हे भी इसलिए चुना, क्योंकि तुमने खुशियॉ को चुना।।
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