Monday, October 15, 2012

उम्मीद...


चुपके से सिरहाने रख आया हूं
कई ख्वाब सुनहरे से
कोई एक दिन तो मेरा होगा
जब ये तैरकर जा बसेंगे तेरी आंखों में
उसके बाद यकिनन
हर पल मेरा होगा
फिर, सपनों से दूर कहीं
बुन रहे होंगे हम
एक हकिकत की दुनिया अपनी-सी
जो कुछ-कुछ होगी मिठी-सी
थोड़ी होगी सोंधी-सी
 

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