सोचता था मैं ही
पागल हूँ दुनिया में
तुझे देखकर भरम टूट गया
जी तो पहले भी रहा था
पाकर तुझे सलीका आ गया
घुली है तू चुटकी भर नमक की तरह
अब जिंदगी में जायका आ गया
पता है जब छुआ था लबों को तेरे
तब से ही 'अफीम" का नशा छा गया
अब साथ है मेरे ताउम्र
सोचकर ही सफर का मजा आ गया
पता है तुझे
भरी पड़ी है दुनिया होशियारों से
यह जलती है हम दीवानों से
चल आ, अब चलें दूर कहीं
जहाँ बस हम हों
बातें हो दिवानगी की
झटकें जब भी यादों की धूल तो
कण-कण में हम हो बसे
पागल हूँ दुनिया में
तुझे देखकर भरम टूट गया
जी तो पहले भी रहा था
पाकर तुझे सलीका आ गया
घुली है तू चुटकी भर नमक की तरह
अब जिंदगी में जायका आ गया
पता है जब छुआ था लबों को तेरे
तब से ही 'अफीम" का नशा छा गया
अब साथ है मेरे ताउम्र
सोचकर ही सफर का मजा आ गया
पता है तुझे
भरी पड़ी है दुनिया होशियारों से
यह जलती है हम दीवानों से
चल आ, अब चलें दूर कहीं
जहाँ बस हम हों
बातें हो दिवानगी की
झटकें जब भी यादों की धूल तो
कण-कण में हम हो बसे
सोचता था मैं ही
ReplyDeleteपागल हूँ दुनिया में
तुझे देखकर भरम टूट गया....बहुत ही अच्छी रचना.... दिल की बातो को शब्दों में पिरोना ही रचना है...... जो काम बखूबी किया है आपने.....