एक बार सोचा
क्यों ना रात भर के लिए
जेब में डाल संग ले चलूँ तूझे
जीभर देखूँ, मुठ्ठी भर बातें करूँ
चाँद को चिढ़ाऊँ
तारों को तेरी चुनर में जड़ूँ
तेरे बालों में उँगलियाँ डाल
चाँदनी में नहाऊँ
तेरे लिए तुझे ही गुनगुनाऊँ
घूँट-घूँट कर पी जाऊँ
जब खून में तू घुल जाए
तेरी यादों के तमाम निशाँ दिखाऊँ
तेरी खुशबू को रोम-रोम में बसाऊँ
फिर ताउम्र मैं भी महका फिरूँ
एक ही रात में ए-दिलनशीं
मैं कुछ ऐसा कर जाऊँ
जिंदगी की जद्दोजहद से दूर
तुझे खुशियों के देस ले जाऊँ
मेरी खुशकिस्मती का अब
है ये आलम
तू डली है मेरी जेब में
और मैं, संग तेरे खुशियों के देस में
बेहतरीन प्रस्तुती.....गहन अभिवयक्ति.....
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