Thursday, August 8, 2013

दाता


अक्सर सोचता हूं
कुछ लिखूं आप पर
हर बार आ घेरता है 
भावनाओं का ज्वार
चित्र दर चित्र
कहानी दर कहानी
कई मंजर, कई खुशियां
इस कदर जकड़ लेती है
मैं कहीं डूब जाता हूं
आपके कपड़ों से आती 
उस गंध से
जब कभी में आपसे चिपट कर
सोया करता था बेखौफ
दुख है नहीं बन पाया 
एक उम्दा खिलाड़ी
पर, जिंदगी के खेल में
हार न मानना 
आपसे ही तो सीखा
डर की आंखों में झांकना
कभी हिम्मत न हारना
कोई भी दुख हो कमबख्त
एक नींद के बाद भूल जाना
दोस्तों का आखिरी दम तक
साथ निभाना
किसी की मदद में
कभी कदम न खिंचना
दूसरों के दुख के आगे
अपना दुख छोटा आंकना
जिंदादिल होकर 
बस आज में जीना
प्यार, दुश्मनी दोनों 
खुलकर निभाना
थोड़े कड़वे बोल
फक्कड़ी में भी मजे दिल खोल
सब आप ही से तो सीखा
पता है 
मेरी हंसी, आवाज
शक्ल, शरीर
कहां-कहां से 
निकल आते हो आप
कई बार लड़ता हूं 
नाराज भी होता हूं मैं
पर, बस चिंता है आपकी इसीलिए
दाता, जानता हूं 
कभी नहीं लिख पाऊंगा 
आप पर

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