मेरी यादों का किंवाड़ (दरवाजा)
हर वक्त खुला होता है कमबख्त
नहीं चाहता उसमें सरकना
पर जिस तरह वह बंद नहीं होता
उसी तरह मैं खुद को नहीं रोक पाता
किस्मत ही मेरी ऐसी है
या सारी किताबें एक हो गई
पता नहीं, पर
जब भी मैं दाखिल हुआ
उस किंवाड़ के पार
किताबों के उस समंदर में
हर बार, हर बार
हाथ आई तेरे ही नाम की किताब
पन्नो दर पन्नो लिखी होती हमारी कहानी
वो मिलना, साथ चलना
पर उन सारी किताबों का
क्यों गुम है आखिरी पन्ना?
हर वक्त खुला होता है कमबख्त
नहीं चाहता उसमें सरकना
पर जिस तरह वह बंद नहीं होता
उसी तरह मैं खुद को नहीं रोक पाता
किस्मत ही मेरी ऐसी है
या सारी किताबें एक हो गई
पता नहीं, पर
जब भी मैं दाखिल हुआ
उस किंवाड़ के पार
किताबों के उस समंदर में
हर बार, हर बार
हाथ आई तेरे ही नाम की किताब
पन्नो दर पन्नो लिखी होती हमारी कहानी
वो मिलना, साथ चलना
पर उन सारी किताबों का
क्यों गुम है आखिरी पन्ना?
वो मिलना, साथ चलना
ReplyDeleteपर उन सारी किताबों का
क्यों गुम है आखिरी पन्ना?मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......