ख्वाहिशों की गली से
जब भी निकला
अतृप्त, प्यासा, व्याकुल
हताश, निराश ही मिला
वहाँ की हर चीज लुभावनी
आकर्षक क्यों?
सवाल तो यह भी है
वह गली ही क्यों?
फिर भी, हर बार
नई ललक के साथ गुजरता हूँ
कई खुशियों को काँख में दबाए
पर, कमबख्त हर बार होती है कसक
कुछ छूट गया है उस गली में
अगली बार फिर जाऊँगा
चुन लाऊँगा तमाम जगमगाहट
पर, जब भी जाता हूँ
बुझा ही लौटा हूँ
क्यों, उठते हैं
नए अरमान दिल में
मैं फिर भटकने को मजबूर
ख्वाहिशों की गली में
जब भी निकला
अतृप्त, प्यासा, व्याकुल
हताश, निराश ही मिला
वहाँ की हर चीज लुभावनी
आकर्षक क्यों?
सवाल तो यह भी है
वह गली ही क्यों?
फिर भी, हर बार
नई ललक के साथ गुजरता हूँ
कई खुशियों को काँख में दबाए
पर, कमबख्त हर बार होती है कसक
कुछ छूट गया है उस गली में
अगली बार फिर जाऊँगा
चुन लाऊँगा तमाम जगमगाहट
पर, जब भी जाता हूँ
बुझा ही लौटा हूँ
क्यों, उठते हैं
नए अरमान दिल में
मैं फिर भटकने को मजबूर
ख्वाहिशों की गली में
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