प्यास
Saturday, March 3, 2012
समझ!
तुम नहीं समझोगे मुझे
कहती है वो
झगड़ती भी है
बिन पानी मछली-सी
तड़पती भी है
लौट आती है जैसे
चिड़िया अपने नीड़ में
वैसे ही, मेरी बाहों में समाँ
कहती है वो
एक तुम ही तो हो
जो समझते हो मुझे
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