बात 'हमारी"
सच-झूठ
तेरा-मेरा
राग-द्वेष
अपना-पराया
मोहब्बत-शोहरत
विश्वास-अविश्वास
ऐसे न जाने कितने
मंतर देखे
अपने हिसाब से
जपते तोते देखे
सही क्या है
पता नहीं
क्या 'सही" कभी
होता है सही
शायद, पता नहीं
हर जगह बिखरी है
बस 'दुनियादारी"
फिर कैसे, कब, कहाँ
कर पाएँगे बात 'हमारी"?
touchy...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत........
ReplyDeletekhabi khabi kuch subadh kitne sahi hote haiiiiii....................jarurat hai bas sochne ki
ReplyDeletewill share this wid every one..................