उसकी आँखों में
पलते थे खुबसूरत ख्वाब
जहाँ फूलों, बगीचों
पहाड़ों, झरनों
जंगल से बातें हुआ करती थी
उसके हाथों में
रहती थी एक किताब
जिसे पढ़कर मिला करता था
नए ख्वाबों के लिए जरूरी उर्वर
उसके घेरे में
बैठा करते थे कई दोस्त
जहाँ मस्ती, मौज
शैतानियों, चुहल
गपशप में बीता करता था सारा दिन
उसके कानों में
हरदम घुला रहता था मध्ाुर संगीत
जिसे सुन बादल
हवा, चाँद, तारे
सूरज सबको
दामन में समेट लिया करती थी
कितनी खुश थी वह
...पर इन दिनों
छूट गई हैं किताबें
वे ख्वाब, दोस्त
और संगीत
सुना है वह 'प्यार" में है
अब करती रहती है
बस, खुद से ही बातें
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