Wednesday, April 3, 2013

मंजूरी



मेरा बोलना, चुप रहना
कुछ भी मंजूर नहीं
शायद यह शुरूआत है
एक दिन कह दे वो
तू ही मंजूर नहीं
एक हद तक डरता है दिल
शायद वह मकाम आता है फिर
होने, न होने में
नहीं रह जाता कोई अंतर
खोने का डर, पाने की चाह
क्या बस इतना ही
प्रेम, अधिकार, स्वीकार्य
सबकुछ कितना आश्रित
बंधनों को भी 
पता नहीं क्यों 
मुक्ति मंजूर नहीं

1 comment:

  1. mukti ki talash karna bekar hai...........wo to bhitar hi hai.........jab chaho is se aazad ho jao.

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