दुआ करता हूं
जन्म ले हर घर एक बेटी
हर एक को नसीब हो देखना
उसे बढ़ते, सपने बुनते
नसीब हो फूल से
कोमल हाथों की छुअन
पिता के प्रेम में पल-पल
आंखों में भर आते अश्रु भी नसीब हो
उसकी हंसी, मस्ती
नाजुक संवेदनाएं भी हो नसीब
फिर देखना चाहता हूं
कैसे वह कर पाएगा
वह सब, जो अब तक
करता रहा है
पत्नी, मां, बहू
या फिर उससे
जिसे मानता रहा है महज भोग्या
यह भी देखना है मुझे
बेटी नसीब होने के बाद
वह है कौन
जो नहीं बन पाया है
पशु से पुरुष
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