खुशी की चाह में
जब बढ़ने लगे कदम
उसने कहीं ओर क्यूँ
खोज लिया अपना ठिकाना
हम तो बेशर्म इतने
पहुँच गए उस घर तक भी
लेकिन उस जालिम ने
दरवाजा ही ना खोला
हलक सूख जाने तक
खूब नाम उसका पुकारा
तब, शक्ल देख उसने कहा
ये बता आखिर तू कौन है हमारा?
लगता था मुझे
पसंद है उसे साथ मेरा
लेकिन, जब होश आया तो
मिला गमों के बिच बसेरा मेरा
जब बढ़ने लगे कदम
उसने कहीं ओर क्यूँ
खोज लिया अपना ठिकाना
हम तो बेशर्म इतने
पहुँच गए उस घर तक भी
लेकिन उस जालिम ने
दरवाजा ही ना खोला
हलक सूख जाने तक
खूब नाम उसका पुकारा
तब, शक्ल देख उसने कहा
ये बता आखिर तू कौन है हमारा?
लगता था मुझे
पसंद है उसे साथ मेरा
लेकिन, जब होश आया तो
मिला गमों के बिच बसेरा मेरा
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