Thursday, August 11, 2011

तेरी याद!


धुनी रमाए हैं पेड़
पंछी भी कहीं उनमें ही
समा कर दे रहे साथ
मदहोश हवा चाहती
है खुब शोर करना
पर मौन संगीत को तोड़ने की
वह नहीं जुटा पाती हिम्मत
ये इमारत, वाहन
दूर तलक जाता रास्ता
सबके सब हैं खामोश
शायद भीगा हुआ है
इनका भी कोई कोना
खिड़की से जब देखता हूँ
दिलों में उठते हैं कईं बुलबुले
बाहर दूर तलक
बहती नजर आती है 

तेरी याद







 

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