पिघल कर
चाहता हूं बूंद बन जाना
आऊं जो तेरी हथेली पर
तो तुझे थोड़ा तो भीगा पाऊं
जो छू लूं लब तेरे
तो तेरे जिस्म की सैर कर जाऊं
याद बनकर कभी
तेरी पलकों को झील बना जाऊं
और कभी आईना समझ मुझमे तू जो झांके
तेरी शोख अदा पर मैं इतराऊं
पर कहां होता है ऐसा
हर चीज पिघलते
देखी है मैंने
बस तेरी ही आग ऐसी है कमबख्त
खुद को राख होते
देख रहा हूं मैं
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