Saturday, April 6, 2013

भ्रम



भ्रमों को हो ही जाने दो दूर
देखूं तो असल चेहरा अपना
परत-दर-परत 
प्याज के मानिंद 
उतरे जब नकाब
सिवाय आंसू के 
हाथ बस रिता रहा
लौट जाना चाहता हूं
फिर अपनी खोलों में
कि मजबूरी हो गई है
चूभता है शूल-सा
अब ये नंगा बदन मुझे
वक्त लगा जानने में ये
भ्रमों से खुबसूरत है 
जिंदगी मेरी
क्यों कोई भला झेलेगा 
फिजूल में मुझे

Friday, April 5, 2013

तोहमत...



तोहमत यह है मेरे सिर
साथ होकर भी कहां साथ होते हो
हर तरफ बिखरी है
महक तेरी
फिर भला कोई चाहकर भी
अकेला कैसे रहे
चाहता हूं 
छोड़ दे तू भी अब मुझे
आजमाऊं यह भी तो जरा
कब तलक बसी रहेगी 
सांसों में मेरी
तू जिंदगी की तरह
रोज सोचता हूं 
बताऊं तूझे 
तू दौड़ती है रगों में मेरी
खून की तरह 
पर, रोक लेता हूं 
तोहमत सुनने के लिए
ये ही तो बताती है 
'मैं" भी कहीं रहता हूं 
जिंदगी में तेरी
एक हमसाये की तरह

Wednesday, April 3, 2013

उलझन



दोस्ती की चाह में
प्रेम कर बैठा
जब उसे पाया तो
फिर पुरानी गलियां याद आईं
ये दिल है, दिल 
जो हर बार 'आज" में प्यासा है 

मंजूरी



मेरा बोलना, चुप रहना
कुछ भी मंजूर नहीं
शायद यह शुरूआत है
एक दिन कह दे वो
तू ही मंजूर नहीं
एक हद तक डरता है दिल
शायद वह मकाम आता है फिर
होने, न होने में
नहीं रह जाता कोई अंतर
खोने का डर, पाने की चाह
क्या बस इतना ही
प्रेम, अधिकार, स्वीकार्य
सबकुछ कितना आश्रित
बंधनों को भी 
पता नहीं क्यों 
मुक्ति मंजूर नहीं