शुक्र है नहीं करता तेरा ऐतबार
वर्ना तेरे इंतजार में
एक नहीं हजार बार मरता
गम के चिरागों से
रोशन है जिंदगी मेरी
आखिर कब तक
खुशियों की चाह में
अंधेरे में बसर करता
चलता हूँ रोज अकेला
शाम तक कारवाँ साथ होता
तू ही बता
कब तक तेरी कुरबत की खातिर
बियाबान में भटकता रहता
सोचता हूँ
छोड़ दूँ तुझे अपने हाल पे
पर कमबख्त, तेरा वजूद
रगों में मेरी
लहू बन हरदम दौड़ा करता
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