Friday, October 28, 2011
दवा भी तू-दारू भी तू!
एक चम्मच सुबह
एक चम्मच शाम
मिलती है मुझे
तू दवा की तरह
हर सुबह, हर शाम
सोचता हूँ
क्या ऐसे हो जाएगी उम्र तमाम?
कौन साऽऽला जीना चाहता है
यूँ बीमारों की तरह
एक दिन ऐसा जरूर होगा
जब मैं दवा नहीं दारू समझ
पूरी बोतल उड़ेल जाऊँगा
फिर देखूँगा नशा-ए-इश्क
क्या गुल खिलाएगा
...और क्या यह नाचीज बंदा
प्यार के समंदर से जिंदा बच पाएगा?
Tuesday, October 25, 2011
मेरी दिवाली!
लोग जला रहे हैं दीप
लक्ष्मी के सामने, तुलसी के पास
पंडेरी के किनारे, ताक पर
हर कोने को कर रहे हैं रोशन
रसोइयों से उठी मीठी, भीनी-भीनी खुशबू
गलियों के रास्ते फैल रही है चहूँ ओर
फूलझड़ियाँ, अनार, जमीन चकरी
लड़ रही हैं अमावस के अंधियारे से
उत्साहित बच्चे, बड़ों के बालमन
डूबे हैं मस्ती के आलम में
इंसान, घर, जानवर
यहाँ तक की प्रकृति भी
नजर आ रही है नए परिधान में
मैं भी डूबा हूँ इस जश्न में
फर्क सिर्फ इतना है
मेरी मनती है हर रोज दिवाली
शुक्रिया
मेरी जिंदगी रोशन करने के लिए
Sunday, October 23, 2011
तेरे प्यार का जहर!
क्यों फना हो जाती है जिंदगी
किसी एक आह पर
क्यों आँखें पथराया करती है
किसी एक राह पर
क्यों जीने की ख्वाहिश नहीं बचती
किसी के यूँ चले जाने पर
क्यों खुद को ही भूल जाता हूँ
किसी एक चाह पर
क्यों नशा छा जाता है
किसी एक मुस्कान पर
क्यों वजूद ही मिट जाता है
कोई हाथ थाम कर
न जिंदा हूँ, न गिना जाता हूँ मुर्दों में
सच है, बड़ा जालिम है तेरे प्यार का जहर
Friday, October 21, 2011
मेरा अकेलापन!
वह निगल जाता है
साबूत ही मुझे
अजगर के मानिंद
धीरे-धीरे चटकती है
हिम्मत, फिर जज्बात
खुली आँखों में
छा जाता है अंधकार
गहरे शून्य में धँसता
और धँसता जाता हूँ
इतने अंधेरे में भी कैसे
कई उँगलियाँ
मेरी ओर उठी दिखती हैं, कैसे?
पर सारी उँगलियाँ मेरी
ही तो हैं
तभी वह बड़ी कुटिल मुस्कान से
अचानक उगल देता है
तब नजर आती है
दमकती, चमकती दुनिया
अपनी सफलताओं पर कुप्पा मैं
फिर पलटकर 'उसको" नहीं देखता
Friday, October 14, 2011
Thursday, October 13, 2011
मेरा 'बरकती सिक्का"!
भीगा हुआ वह मासूम
बड़ी उम्मीद से
हर शख्स को देखता
जैसे ही कोई जेब में हाथ डालता
वह खिल जाता
तुरंत गोता लगाकर
सिक्का निकाल लाता
कई बार खाली हाथ भी लौटता
जब भी मैंने ये नजारा देखा
उसकी चूक में खुद की हार को पाया
ऐसे में बरबस ही
तेरा हाथ खुद के हाथ में पाया
फिर नर्मदा से आँख बचाकर
मुट्ठी में भींच, तुझ 'बरकती सिक्के"
को ले मैं भागा चला आया!
Tuesday, October 11, 2011
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